tag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post7486325201702328675..comments2023-07-02T08:56:37.375-07:00Comments on UMRA QUAIDI (उम्र कैदी): 1. जिन्दा लाश : क्या आप विश्वास कर सकेंगे?Umra Quaidihttp://www.blogger.com/profile/08238271426996713890noreply@blogger.comBlogger83125tag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-13858228886236805872011-11-27T00:10:58.336-08:002011-11-27T00:10:58.336-08:00aapki aapbiti padker ahsaas hota he ki jhoot ki ka...aapki aapbiti padker ahsaas hota he ki jhoot ki kaali chhaya such ko chhupa deti he.. lekin vishwaas rakhiye such ka surye jab udaye hoga to apne prakaash se us jhoot ki kaali chhaya ko mita dega.... aur vese bhi aapne likha ki aap saza bhi bhoogat chuke he(jis gunah ko apne kiyaa nahi)..mtlab aap saari aapbiti bhoolkr ek naye jivan ki shurubaat kre.. aur aisa banaye ki dusre bhi imaandari aur sachhai se prenit ho....<br />best of luckAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-88166425328202450382011-10-19T23:22:26.048-07:002011-10-19T23:22:26.048-07:00Adbhut very nice all articles.Adbhut very nice all articles.Jai Guru Geeta Gopalhttps://www.blogger.com/profile/01621836960274288942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-78926467162453425042010-12-21T22:17:12.994-08:002010-12-21T22:17:12.994-08:00सबकी टिप्पणियां तो नहीं पढ़ सका अभी तो आपकी कहानी क...सबकी टिप्पणियां तो नहीं पढ़ सका अभी तो आपकी कहानी की भी एक ही किश्त पढ़ी है ... इसलिए कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी ! फिर भी दो बातें आपसे कहूँगा ... मानव सभ्यता के विकास की प्रकृति नें आपसे कुछ काम लेना है.. हो सकता है यह कोई बहुत बड़ा कार्य हो ! उसके संकेत को पहचानने का प्रयास कीजिये! यह शायद कलम के माध्यम से ही होने वाला हो ! सो गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ लिखिए ..शब्द के प्रति जिम्मेदारी कम लोग ही महसूस कर पाते हैं ..<br />दूसरी बात मानव समाज में जितने भी उपद्रव और अशांति, अन्याय और शोषण व्याप्त है उसके पीछे तीन शब्द हैं "मैं और मेरा परिवार"..<br />और जो कुछ भी लिखना होगा आपको पढ़ने के बाद ही लिख पाऊँगा !श्याम जुनेजा https://www.blogger.com/profile/11410693251523370597noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-73671295946592723552010-10-22T07:26:08.264-07:002010-10-22T07:26:08.264-07:00श्री शेखावत जी,
आपने प्रारम्भ में मित्र का सम्बोधन...श्री शेखावत जी,<br />आपने प्रारम्भ में मित्र का सम्बोधन दिया है और अन्तिम वाक्य में इस अनाम मित्र पर बहुत ब‹डा सन्देह प्रकट करके, मित्रता को पहले ही चरण में धरासाई कर दिया! खैर...! आपने मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी की, इसके लिये आपका धन्यवाद।<br />श्री शेखावत जी आपने लिखा है कि-<br />मेरे मन में आपके ब्लाग को देखकर एक बात उठी कि जहां तक आपकी प्रस्तावना का सवाल है उसे प‹ढकर प्रतीत होता है की आप पर सन १९८४ में मुकदमा दायर हुआ क्योंकि बकौल आपके यदि अपील नहीं करते तो १९९८ तक १४ वर्ष की सजा भुगत चुके होते अर्थात आप सन १९८८ से जेल में नहीं है।<br />आपके ब्लॉग के अनुसार आप एक अधिवक्ता हैं। कानून जानते हैं। दण्ड प्रक्रिया संहित की धारा ४३३ (ए) के अनुसार उम्र कैद का मतलब कम से कम १४ वर्ष है। जितना मैं, जानता हूँ, इसके बारे में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में कहा गया है कि उम्र कैद में विचारण के दौरान जेल में गुजारा गया समय उम्र कैद में नहीं जो‹डा जाता है। इसलिये आपका सन्देह जायज है, लेकिन सही नहीं है। मुझे १९८४ में उम्र कैद की सजा सुनाई गयी थी और मैं १९८६ में बाइज्जत बरी हो चुका हूँ और निश्चय ही तब से समाज का हिस्सा भी हूँ।<br />आपके अगले वाक्य में आपने लिखा है कि- <br />इसका अभिप्राय ये हुआ कि पिछले २२ वर्षा से आप कुछ ना कुछ अवश्य कर रहे है तो अचानक आपको आगें क्या करना चाहिए इसके लिए पूछने की आवश्यकता कैसे आन प‹डी थो‹डा समझने में मुश्किल हुई?<br />हाँ मैं १९८६ से कुछ न कुछ कर ही रहा हूँ। लेकिन मैंने दस वर्ष पहले सवाल पूछा होता तो भी आप कह सकते थे कि १४ वर्ष बाद सवाल क्यों पूछा गया। फिर भी सवाल तो आपका जायज ही है, लेकिन अभी इसका उत्तर मांगना समीचीन नहीं हैं। युक्तियुक्त समय पर आपको इसका जवाब मिल जायेगा।<br />आगे आप लिखते हैं कि-<br />डर है आपकी कहानी भी कहीं हिन्दी समाचार चौनलों की तरह टी०आर०पी० ब‹ढाने वाला शगुफा मात्र ना हों। हो सके तो प्रोफाईल सम्पूर्ण करें।<br />क्षमा करें। प्रोफाइल पूरा करना सम्भव नहीं है, लेकिन आपका उक्त सन्देह पूरी तरह से निराधार है। आप निश्चिन्त रहें, आपको सच्ची जानकारी ही प्राप्त हो रही है।Umra Quaidihttps://www.blogger.com/profile/08238271426996713890noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-67302599106421046152010-10-21T10:38:38.825-07:002010-10-21T10:38:38.825-07:00ho gayaa teraa.....???
hnm...???ho gayaa teraa.....???<br /><br /><br />hnm...???manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-83267073692093398932010-10-21T10:37:43.762-07:002010-10-21T10:37:43.762-07:00ho gayaa ...?ho gayaa ...?manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-64284765881568064242010-10-21T10:27:56.922-07:002010-10-21T10:27:56.922-07:00मित्र आपको सभी ने जीवन को जीने की सलाह दी है इसलिए...मित्र आपको सभी ने जीवन को जीने की सलाह दी है इसलिए जहां तक आपकी कहानी के पहले अंक का प्रश्न है उसे पढ़कर मैं भी यहीं राय दूंगा। क्योंकि जीवन में कठिनाईयों से घबराकर जिन्दगी से समझौता करना कोई बहादुरी नहीं है। लेकिन इन सब बातों के अलावा मेरे मन में आपके ब्लाग को देखकर एक बात उठी कि जहां तक आपकी प्रस्तावना का सवाल है उसे पढ़कर प्रतीत होता है की आप पर सन 1984 में मुकदमा दायर हुआ क्योंकि बकौल आपके यदि अपील नहीं करते तो 1998 तक 14 वर्ष की सजा भुगत चुके होते अर्थात आप सन 1988 से जेल में नहीं है। इसका अभिप्राय ये हुआ कि पिछले 22 वर्षा से आप कुछ ना कुछ अवश्य कर रहे है तो अचानक आपको आगें क्या करना चाहिए इसके लिए पूछने की आवश्यकता कैसे आन पड़ी थोड़ा समझने में मुश्किल हुई। डर है आपकी कहानी भी कहीं हिन्दी समाचार चैनलों की तरह टी0आर0पी0 बढ़ाने वाला शगुफा मात्र ना हों। हो सके तो प्रोफाईल सम्पूर्ण करें।Rakesh Shekhawathttps://www.blogger.com/profile/17830031877729972398noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-18882875756917400812010-10-16T19:08:17.277-07:002010-10-16T19:08:17.277-07:00आदरणीय श्री दादूदर्शन जी,
नमस्कार।
आपने दादूदर्शन...आदरणीय श्री दादूदर्शन जी,<br />नमस्कार।<br /> आपने दादूदर्शन के नाम से मेरे ब्लॉग-उम्र कैदी-पर पधारकर अगाध आत्मीयता से सराबोर निम्न सकारात्मक, ऊर्जावान और ओजस्वी टिप्पणी लिखी, जिसके मेरी ओर से हृदय ये आभार स्वीकार करें।<br />आप मेरी पोस्ट पर आए आभार। आपके जीवन की करुण-गाथा प‹ढकर दु:ख हुआ, लेकिन उससे भी ज्यादा दु:ख तब हुआ जब आपके द्वारा दर्शाई गयी परिस्थितियों का आंकलन किया ---<br />यदि मैं कहीं जा रहा हूँ और कोई द्वेष रखने वाला, मुझे उठाकर गंदे-बदबू-दार नाले में फेंक दे, तो स्वाभाविक है कि यथा-संभव जल्दी से नाले से बाहर आऊँगा और नहा कर कपडे बदलूँगा।<br />मैं आपका नाम नहीं जानता। नाम -जन्म के बाद माँ-बाप द्वारा दी गयी दूसरी सबसे खूबशूरत नेमत जो आपकी पहिचान थी, का कहीं अता-पता नहीं है। आदरणीय-पूज्य माता-पिता द्वारा दी गयी पहिचान को दर-किनार करके ,एक विरोधी-दुश्मन द्वारा वलात (बलात्) आपके गले में डाल दी गयी पहिचान को ही आपने अपने अस्तित्व पर चस्पा कर लिया। नाले कि गन्दगी में सने कप‹डे आप आज भी ढो रहे हैं। क्या ये खास हैं? यदि नहीं तो इनसे इतना लगाव क्यों ? अपने दिलेरी दिखाई है। यदि आपके कथन अक्षरस:सत्य हैं तो आप जांबाज हैं। एक दिलेर ,जिसने फनां होने के कगार पर भी इंसानियत को जिन्दा रखा है, आपका नाम भी जांबाज, दिलेर या ........होता। आपकी समस्या का समाधान यहाँ-वहाँ नहीं आपके ही हौसलों में मिलेगा। आपने कहावत सुनी होगी ,भगवान भी उसकी मदद करते हैं जो अपनी खुद मदद करते हैं। फिर इन्सान की औकात क्या ? खुदा कहलो, भगवान कहलो या कहें कुदरत ने इस मानव-जिस्म में अनंत-ऊर्जा समाहित की है। ऊर्जा को उद्देलित (उद्वेलित) करने या उकसाने के लिए इच्छा-शक्ति दी है। ऊर्जा, अच्छाई की ओर जा रही है या बुराई की ओर? ये जानने के लिए विवेक बनाया है।<br />जब सारे समाधान अन्दर ही हैं तो बाहर यहाँ-वहाँ भटकने से क्या मिलेगा? मैं आपके बीच का ही आदमी हूँ,कोई युग-द्रष्टा नहीं। यहाँ लगभग सभी की qजदगी इतनी ही पेचीदी है।<br />आपने लिखा है कि आपको दया रहम या झूठी सहानुभूति नहीं चाहिए। ये कैसे संभव है, अपनी पोस्ट की टिप्पणियां देखिए, लगभग सभी ने हाथ फिराया है, इन कप‹डों में यही मिलेगा।<br />मैं दो तल्ख बातों के साथ समापन करता हूँ ---<br />सबसे पहले कपडे बदलिए (कपडे बदलने का आशय तो समझ रहे होंगे)।<br />किसी रोजी-रोजगार से लगिए (ये सोचकर कि काम छोटा या ब‹डा नहीं होता, क्योंकि इसकी-उसकी पोस्ट पर चौधरी बनकर टिपण्णी करने वाला मैं खुद मजदूरी करता हूँ)।<br />ताकि आपके दिमांग में जो बेवजह चलता रहता है वो कम हो और दिमांग में से शैतान बाहर आए। इस तरह बदलाव अवश्य आएगा। <br />धन्यवाद।<br />------------------<br /> मुझे आपकी तल्ख बातों का कोई बुरा नहीं लगा, बल्कि मुझे तो खुशी है कि आप जैसे भी हैं, इस दुनिया मैं। यदि मैं इस ब्लॉग पर उम्र कैदी के रूप में प्रस्तुत नहीं होता तो आपकी उक्त टिप्पणी भी मुझे नहीं मिलती। जहाँ तक आपकी अन्तिम दो सलाहों का सवाल है, तो श्रीमान जी आपने बहुत जल्दी मेरा आकलन कर लिया है कि मैं बेरोजगार या निकम्मा हूँ और न हीं किसी भी काम को छोटा ब‹डा समझता हूँ। मैं फिलहाल इतना ही लिख सकता हूँ कि प्रतिदिन औसत १४-१५ घण्टे काम करता हूँ।<br />जहाँ तक बलात् लिपटाये गये गन्दगी भरे कप‹डों में अभी तक लिपटे रहने की बात है, आपने अपने दृष्टिकोण से बहुत सही लिखा है, लेकिन हर बार, हर रास्ता मंजिल तक नहीं पहुँचाया करता है। बन्दूक से निकली हर एक गोली निशाने पर नहीं लगती है। उसी प्रकार आपकी इतनी सही बात भी सच्चाई से बहुत दूर है। यही तो जानने और समझने की बात है कि गन्दगी ढेर में, गन्दगी से सने व्यक्ति को नहाने का अवसर देने से पूर्व ही या नहा लेने के बाद भी बार-बार गन्दगी में धक्के मारने वाले यदि ऐसे रक्त सम्बन्धी हों, जिन्हें व्यक्ति चाहकर भी दुश्मन नहीं कह सकता! दुश्मन मान भी ले तो दुश्मनी निभा नहीं सकता, तो फिर क्या गन्दा नजर आना उसकी नीयति नहीं बन जाती है? यदि ऐसा करने वाले जन्म देने वाले माता-पिता और भाई ही हों तो, मुश्किल और भी बढ जाती है। विशेषकर तब स्थिति और भी विचित्र हो जाती है, जबकि निशाना दागने वाले को अपने निशाने से आहत होने वाले के दर्द का अहसास ही नहीं हो। रही बात नाम की तो आदरणीय आपको सारी जानकारी मिलेगी और आगे आप जैसे गुणीजनों को ही निर्णय करना है कि क्यों मैं आज भी स्वयं को उम्र कैदी लिख रहा हूँ?<br />आशा है कि आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा। शुभकामनाओं सहित।Umra Quaidihttps://www.blogger.com/profile/08238271426996713890noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-81964184615741393822010-10-15T23:31:23.537-07:002010-10-15T23:31:23.537-07:00आप मेरी पोस्ट पर आए आभार | आपके जीवन की करुण-गाथा ...आप मेरी पोस्ट पर आए आभार | आपके जीवन की करुण-गाथा पढ़कर दुःख हुआ ;लेकिन उससे भी ज्यादा दुःख तब हुआ जब आपके द्वारा दर्शाई गयी परिस्थितियों का आंकलन किया ---<br />यदि मैं कहीं जा रहा हूँ और कोई द्वेष रखने वाला ,मुझे उठाकर गंदे-बदबू-दार नाले में फेंक दे ;तो स्वाभाविक है कि यथा-संभव जल्दी से नाले से बाहर आऊँगा और नहा कर कपडे बदलूँगा |<br />मैं आपका नाम नहीं जानता | नाम -'जन्म के बाद माँ-बाप द्वारा दी गयी दूसरी सबसे खूबशूरत नेमत' जो आपकी पहिचान थी ;का कहीं अता-पता नहीं है | आदरणीय-पूज्य माता-पिता द्वारा <br />दी गयी पहिचान को दर-किनार करके ,एक विरोधी-दुश्मन द्वारा वलात आपके गले में डाल दी गयी पहिचान को ही आपने अपने अस्तित्व पर चस्पा कर लिया | नाले कि गन्दगी में सने कपडे <br />आप आज भी ढो रहे हैं | क्या ये खास हैं? यदि नहीं तो इनसे इतना लगाव क्यों ? अपने दिलेरी दिखाई है |यदि आपके कथन अक्षरस:सत्य हैं तो आप जांबाज हैं .एक दिलेर ,जिसने फनां होने <br />के कगार पर भी इंसानियत को जिन्दा रखा है ,आपका नाम भी जांबाज,दिलेर या ........होता | आपकी समस्या का समाधान यहाँ-वहां नहीं आपके ही हौसलों में मिलेगा | आपने कहावत सुनी होगी ,'भगवान भी उसकी मदद करते हैं जो अपनी खुद मदद करते हैं |' फिर इन्सान की औकात क्या ? खुदा कहलो ,भगवान कहलो या कहें कुदरत ने इस मानव-जिस्म में <br />अनंत-ऊर्जा समाहित की है | ऊर्जा को उद्देलित करने या उकसाने के लिए इच्छा-शक्ति दी है | 'ऊर्जा ,अच्छाई की ओर जा रही है या बुराई की ओर?ये जानने के लिए विवेक बनाया है |<br />जब सारे समाधान अन्दर ही हैं तो बाहर यहाँ-वहां भटकने से क्या मिलेगा ? मैं आपके बीच का ही आदमी हूँ ,कोई युग-द्रष्टा नहीं |यहाँ लगभग सभी की जिंदगी इतनी ही पेचीदी है |<br />आपने लिखा है कि आपको दया रहम या झूठी सहानुभूति नहीं चाहिए | ये कैसे संभव है अपनी पोस्ट की टिप्पणियां देखिए ,लगभग सभी ने हाथ फिराया है ; इन कपड़ों में यही मिलेगा |<br />मैं दो तल्ख़ बातों के साथ समापन करता हूँ ---<br /> सबसे पहले कपडे बदलिए (कपडे बदलने का आशय तो समझ रहे होंगे)|<br />किसी रोजी-रोजगार से लगिए( ये सोचकर कि काम छोटा या बड़ा नहीं होता ,क्यों कि इसकी-उसकी पोस्ट पर चौधरी बन कर टिपण्णी करने वाला मैं खुद मजदूरी करता हूँ) |<br />ताकि आपके दिमांग में जो बेवजह चलता रहता है वो कमA हो और दिमांग में से शैतान बाहर आए |इस तरह बदलाव अवश्य आएगा | <br /> धन्यवाद |daddudarshanhttps://www.blogger.com/profile/11283228649319562916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-90389788591098861022010-10-15T08:14:44.966-07:002010-10-15T08:14:44.966-07:00उम्र कैदी जी ! परिस्थितियों का सामना तो करना ही हो...उम्र कैदी जी ! परिस्थितियों का सामना तो करना ही होगा ! पर भावुकता में न रह कर जीवन के लक्ष्य को आधार बनाना चाहिए ! इससे आप की लड़ाई केवल आपकी नही बल्कि उन तमाम लोंगों की होगी जो अच्छे हैं और लड़ रहे हैं ! याद रखिये ...यदि जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है , तो अच्छाई के मार्ग पर दृढ़ता के साथ चलने के आलावा कोई विकल्प नही है ! आपके लिए सुखमय जीवन के लिए शुभ कामनाएं !!ushmahttps://www.blogger.com/profile/16614535125485445425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-1211615285902516492010-10-15T08:01:46.387-07:002010-10-15T08:01:46.387-07:00आप किसके उम्र कैदी हैं ?आप किसके उम्र कैदी हैं ?alka mishrahttps://www.blogger.com/profile/01380768461514952856noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-59007758466765781212010-10-15T03:49:49.171-07:002010-10-15T03:49:49.171-07:00आपकी दास्तां तो दर्दनाक और शर्मनाक है. आपके के घ...आपकी दास्तां तो दर्दनाक और शर्मनाक है. आपके के घरवालों को तो कम से कम अब आपका साथ देना ही<br />चाहिए था .मैं चाहूँगा कि अब आप शांति से अपना जीवन व्यतीत करें. जिन लोगों ने आपको फंसाया उन लोगों को<br />कभी भी माफ़ नहीं किया जा सकता. उन्होंने आपकी ज़िन्दगी तबाह कर दी. आप के साथ बहुत ही नाइंसाफी हुई है. <br />काश आपको इन्साफ मिले, और अपराधियों को सजा मिले तो कुछ बात बने .वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17461991763603646384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-2414225880957835762010-10-15T01:35:10.181-07:002010-10-15T01:35:10.181-07:00जो आपके साथ घटा निश्चित ही वह दुखद है। मुझे इस संद...जो आपके साथ घटा निश्चित ही वह दुखद है। मुझे इस संदर्भ में आपकी कहानी की अगली पोस्टों का कतई इंतजार नहीं है। इंतजार है आपकी नई सोच का जो अपने पिछले अनुभवों में पक कर बनाई है। हां यह अवश्य है कि उन अनुभवों की बात आप बीच बीच में करते रहें। अन्यथा आपकी यह आपबीती एक सत्यकथा बनकर रह जाएगी और लोग उसे उसी तरह पढ़ेगे़। <br />आपने अपने बचपन का गणित का जो उदाहरण दिया वह आप पर नहीं हमारी शिक्षा प्रणाली में गणित पढ़ाने पर सवाल उठाता है। आज भी प्राथमिक कक्षा के बच्चे 4595 को वैसे ही लिखते हैं क्योंकि स्थानीय मान या प्लेस वैल्यू की अवधारणा समझाना अब तक हम नहीं सीख पाए हैं। <br />और आप सच्चे हैं तो दुनिया के सामने उसी तरह आइए। यह पर्दादारी आपको बहुत दिनों तक जारी नहीं रखनी चाहिए।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-86181170737368237692010-10-15T01:34:11.963-07:002010-10-15T01:34:11.963-07:00आप के जीवन का बुरा समय गुजर चुका है
आप के परिवार...आप के जीवन का बुरा समय गुजर चुका है <br />आप के परिवार को आप का साथ देना चाहिए थाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-35686620934751960302010-10-15T01:25:55.984-07:002010-10-15T01:25:55.984-07:00परमात्मा आप की मदद केरे
आप को शुख शान्ति प्रदान क...परमात्मा आप की मदद केरे <br />आप को शुख शान्ति प्रदान करे<br /><br />जो हो गया उसको तो बदल नही सकते <br />आगे आपका जीवन सुखमय हो यही प्राथना हैAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09627337220847528252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-81873208107029027872010-10-15T00:46:55.663-07:002010-10-15T00:46:55.663-07:00आप तो एक उदहारण मात्र है हमारी जेलों में ऐसे ही न ...आप तो एक उदहारण मात्र है हमारी जेलों में ऐसे ही न जाने कितने निर्दोष भरे पड़ें है ,अब इसे किसका दोष माना जाये .१-पुलिस जो सही पड़ताल नही करती,२-वकील जो अक्सर गलत तथ्य पेश करता है या ३- न्यायपालिका जो केवल कागज़ी सबूतों को ही मानती है ..इस चक्र में एक भलेमानुष की तो पूरी उम्र ही तमाम हो जाती है..आपसे निवेदन है की हिम्मत से परिस्थितियां अनूकुल होने की प्रतीक्षा करें आखिर में जीत सत्य की ही होगी....RAJNISH PARIHARhttps://www.blogger.com/profile/07508458991873192568noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-78445926629466200992010-10-14T23:56:57.199-07:002010-10-14T23:56:57.199-07:00der se aane ke liye kshmaa..
aapki marmsparshi aa...der se aane ke liye kshmaa..<br /><br />aapki marmsparshi aapbeeti maine usi din padh lee thee bahut dukh huva.. par reply nahi kar paayi...<br />aapne kuch galat nahi kiya to prabhu pe vishwaas rakho... apne jiwan me punah urjaa ko dharan karo.. aapne kuch galat nahi kiya ye to aapki antaraatma to janti hai to aap apka ab koi kuch nahi bigaad payegaa ..aap acche karmon me Kalyaankari karmo me man lagaye...hamari shubhkaamnayen...डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-61480822183748679462010-10-14T23:51:44.647-07:002010-10-14T23:51:44.647-07:00jitna aap apne aap ko imandari se jan skte hai utn...jitna aap apne aap ko imandari se jan skte hai utna our koi nhi, isiye jo poochhna hai apni antratma se puchhiye . agr aap shi hai to apne aatmvishwas ko our bhi jyada pukhta krte jaiye , kisi ki prwah mt kriye ki koun kya khta hai . ydi aap apni nigah me khi bhi glt hai to usko bhi puri imandari se kubul krte huye utni hi imandari se pshchtap kr lijiye .mn ka sara dvnd bh jayega our apne aap ko dono hi pristhitiyo me hlka mhsoos krenge .<br />apni antratma se bdi adalt duniya me khi nhi hai .aapki abhivykti ki kshmta bhut achchhi hai aap iska sdupyoog blog pr kr ke nihsndeh pathko ko bhi labhanvit kra skte hai .<br />bhut bhut shubhkamnaye .RAJWANT RAJhttps://www.blogger.com/profile/15964389673143254011noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-50501294874297767802010-10-14T22:36:28.842-07:002010-10-14T22:36:28.842-07:00आश्चर्य!जब आप निर्दोष है तो परिवार वाले ऐसा क्यों ...आश्चर्य!जब आप निर्दोष है तो परिवार वाले ऐसा क्यों कर रहे हैं? उन्हें तो हर पल आपको मानसिक सम्बल देना चाहिए.सच याझूथ क्या था ये आपकी अंतरात्मा बहुत अच्छी तरह जानती है.ये भी सच है झूठा ही सही ये दाग बहुत भयानक है विशेष कर एक मासूम बच्ची के साथ....जब आप उस दिन घटना स्थल पर थे ही नही तो आपने उसे साबित करने की कोशिश क्यों नही की?<br />आप जहाँ भी थे उस दिन क्या उसका कोई पुख्ता सबूत या गवाह नही था? खैर जो भी हुआ.....मन भूल हो भी जाये तो उसका मतलब ये नही कि व्यक्ति हमेशा के लिए बुरा ही बन गया है.अपने व्यवहार,कर्म से इंसान अपनी जगह फिर बना लेता है.मैंने कई अपराधियों को बाद में एक बहुत अच्छे और सम्मानित स्थान समाज में पाते हुए देखा है.<br />जीवन में कई बार अनचाहे हादसे हमारे साथ हो जाते हैं किन्तु...जीवन कहीं भी ठहरता नही है.<br />मन दुखी मत रखो ना ही जो हुआ उसके लिए खुद को दोष दो.ईश्वर सब अच्छा करेगा.उस पर यकीन करो.आपको पश्चाताप है यानि अभी बहुत कुछ आपमें कायम है .एक भला इंसान आप में जिन्दा है.उसे संभालिए.जेल से छूटने के बाद मैंने लोगो को और भी बड़ा अपराधी बनते देखा है. आपने अपने आपको इस दलदल में गिरने से बचाए रखा ये कम है क्या?अपने आपके साथ रहोगे तो अपनी क्वालितिज़ को पहचानोगे और वो आपको समाज में वापस सम्मान भी दिलाएगा.<br />मैं कोई मदद कर सकूं....निसंकोच बताना.समाजसेवी नही हूँ पर...<br />ऐसे सब..सबके साथ हूँ,बाते नही करती...करती हूँ.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-67047607803057788652010-10-14T09:03:47.553-07:002010-10-14T09:03:47.553-07:00आपने हिम्मात करके सत्य को सरल शब्दों में कहने का प...आपने हिम्मात करके सत्य को सरल शब्दों में कहने का प्रयास किया, और इस प्रयास के लिए आपको दाद देता हूँ. कईयों के साथ इस तरह की घटना घटती है पर, कम लोग ही अपनी बात कहते हैं |Rakesh Singh - राकेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-5203386498150688142010-10-14T08:23:08.598-07:002010-10-14T08:23:08.598-07:00"मैंने अपराधी नहीं बनने का रास्ता चुना" ..."मैंने अपराधी नहीं बनने का रास्ता चुना" इसके लिए बधाई...<br />आपने अच्छा किया जो सत्य की राह पर चलकर अपनी आपबीती ब्लॉग के माध्यम के से जनजन तक पहुचाने का संकल्प लिया. भाई सत्य की राह बड़ी दुर्गम और तवील होती है इसलिए आपके हौसले को सलाम... आप ने हिम्मत कर जिस नए सफ़र का आगाज़ किया है उस पर बेखौफ चलें और और इंशा अल्लाह आप देखेंगे की सत्य की राह में आप तन्हाँ नहीं हैं... <br />बस एक दुविधा रह जाती है (कृपया अन्यथा नहीं लेंगे) कि जब आपने अपने जीवन की व्यक्तिगत घटनाओं को ही आधार बना कर ब्लॉग लेखन शुरू किया है तो, "कृपया व्यक्तिगत सवाल नहीं करे" का आग्रह क्यूँ?S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')https://www.blogger.com/profile/10992209593666997359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-41278450824418328182010-10-14T04:23:04.759-07:002010-10-14T04:23:04.759-07:00Aisa aksar hota hai ki jindgi main hum karna kuch ...Aisa aksar hota hai ki jindgi main hum karna kuch chahte hain per hota kuch or hai, kher aapki dastan padhkar Dil main udasi to hui ,per main iss baat ko manta hun nki jo hua woh hua ,jindgi bahut khubsurut hai . isliye bhut main jine ki apeksha vartmaan ke bare main socho , bhavishye to khud hi sambar jayega ,agar aap atit main khoye rahe to jo pal aapke paas hain unko bhi sahi dhang se nahi ji payenge .....!<br />Bhavishy ke liye shubhkaamnayen ,agle lrkh ka intjaar hai........!केवल रामhttps://www.blogger.com/profile/04943896768036367102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-74638235586130608642010-10-14T00:11:16.840-07:002010-10-14T00:11:16.840-07:00आपका ब्लॉग पहले भी देखा था ......
नाम पढ़कर सोचा भ...आपका ब्लॉग पहले भी देखा था ......<br />नाम पढ़कर सोचा भी था ये क्या नाम हुआ भला ''उम्र कैदी '''<br />दुआ है आपके लिए अगर आप सच्चाई पर हैं तो आपको इन्साफ जरुर मिले .....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-2886471311856891802010-10-14T00:08:35.641-07:002010-10-14T00:08:35.641-07:00aage jaanane ki teevra utsukta hai....
nyaay ki de...aage jaanane ki teevra utsukta hai....<br />nyaay ki devi ki aakhen shayad isiliye band rahti hain.vallabhhttps://www.blogger.com/profile/06587416661919878554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7808917353051529194.post-46918704898787396892010-10-14T00:04:45.651-07:002010-10-14T00:04:45.651-07:00ओह .....बेहद दर्द भरी दास्तान है .....
जेल , अपमान...ओह .....बेहद दर्द भरी दास्तान है .....<br />जेल , अपमान , जिल्लत .......<br />पर जेहन में एक ही बात कौंधती है अगर आप सच्चाई पर हैं तो अपनी पहचान छुपाने की क्या जरुरत आन पड़ी .....?<br />और अगर आप सच्चाई पर होते तो परिवार जनों का कभी विरोध नहीं होता ....<br />निश्चित तौर पे वे आपकी कोई सच्चाई जानते हैं .....<br />पर ये अच्छी बात है आप किसी गलत राह पर नहीं गए ....<br />कोई इंसान ऐसा नहीं जिससे गलतियां नहीं होती ....हमें अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए ...<br />अपने आचरण को इस तरह का बनाइए वही परिजन एक दिन आपके गुणों के आगे नतमस्तक हो जायें .....<br />याद रखिये सच्चाई पर चलने वालोंके साथ ईश्वर होता है और झूठ गर्त की ओर ले जाता है .....<br />रब्ब पर विश्वास रखिये...ये भी इम्तहान है ....<br />इसमें अपना हौंसला, धीरज और विश्वास बनाये रखें ...<br />हर अँधेरी रात के बाद सुबह जरुर आती है ....<br /><br />अंत में ....<br />आपमें बढिया लिखने की क्षमता है ....<br />अपनी लेखनी को और निखारें .....<br />शुभकामनाओं सहित ........!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.com