मैं एक गाँव में गरीब परिवार में जन्मा। पिताजी हिन्दी पढना-लिखना जानते थे। परिवार में ही नहीं, बल्कि पूरे कुटुम्ब में अन्य कोई साक्षर भी नहीं था। मैं अपने माता-पिता की दूसरी जीवित सन्तान एवं सबसे बडा पुत्र हूँ। तीन छोटे भाई और एक बड़ी एवं एक छोटी बहन हैं।
मुझे छह वर्ष की आयु में गाँव के स्कूल में प्रवेश दिलाया गया और मात्र तीसरी पास करते ही मुझे मेरे पिताजी के स्थानीय दुश्मनों के कारण (1969 में) स्कूल छोडने को विवश होना पडा।
पिताजी की जमीन छीन ली गयी। जिसके चलते 1973 तक के साल मैंने दो रुपये प्रतिमाह प्रति जानवर की मजदूरी पर, गाय-भैंसों के चरवाहे के रूप में गुजारे। 1974 में स्थितियाँ बदल गयी। जमीन वापस मिल गयी, तो पिताजी के सहयोगी के रूप में 1976 तक खेती का काम किया।
जनवरी 1977 में मेरे छोटे भाई-बहनों को घर पर ट्यूशन बढाने आने वाले अध्यापक से मेरी फिर से पढाई शुरू करवाने पर पिताजी ने चर्चा की, जिस पर उन्होंने मेरी परीक्षा ली। मुझसे चार अंकों की संख्या अर्थात् चार हजार पाँच सौ पिच्यानवें लिखने को कहा तो मैंने 4595 लिखने के बजाय लिखा 4000, 500, 95 अर्थात् मैं तब तक तीसरी कक्षा तक की पढाई को भी भूल चुका था। जिसे जानकर अध्यापक ने कह दिया कि ये लडका नहीं पढ सकता। लेकिन मेरे पिताजी ने बार-बार आग्रह किया और मुझे फिर से पढाने का निर्णय लिया गया।
फरवरी, 1977 में मुझे ट्यूशन पढाना शुरू कर दिया। अगस्त या सितम्बर, 1977 में दसवीं कक्षा का प्राईवेट फार्म भरवा दिया गया।
इस बीच मुझे अंग्रेजी को एबीसीडी से शुरू करके, गणित, विज्ञान, हिन्दी, संस्कृत अनिवार्य विषयों के साथ, अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र, हिन्दी साहित्य वैकल्पिक विषय पढने को दिये गये।किसी को आशा नहीं थी कि मैं 13 महिने में सात वर्ष की पढाई करके पास भी हो सकता हूँ! मेरे गाँव में तीन बार से दस बार तक दसवीं में फैल होने वालों की संख्या अच्छी खासी थी। इसलिये मुझे उत्साहित करने के बजाय निराश करने वालों की संख्या ही अधिक थी।
फिर भी न जाने कौनसी ताकत थी, कि मुझे अपने आप पर विश्वास था। अनेक लोग तो मेरे पिताजी के इस निर्णय का मजाक भी उडाया करते थे। मैंने जितनी मेहनत की थी, उसे मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता! वास्तव में रात-दिन एक कर दिये और मार्च, 1978 में दसवीं की परीक्षा दी। कुछ माह बाद परिणाम सामने आया और मैं तृतीय श्रेणी में पास हो गया!
जिस गणित में जनवरी, 1977 में, मैं चार अंकों की संख्या लिखना नहीं आती थी, उसमें मेरे 70 फीसदी अंक आये। कुल मिलाकर 44 फीसदी अंक प्राप्त हुए। एक फीसदी की कमी के चलते मुझे द्वितीय श्रेणी नहीं मिली। जिसका मुझे आज भी पछतावा है! काश मैंने थौडी मेहनत ओर की होती। खैर....?
इस प्रकार 1969 में स्कूल छूटने के बाद 1978 में फिर से मेरा स्कूल शुरू हो गया। ग्यारहवीं कक्षा में नियमित छात्र के रूप में प्रवेश लेकर द्वितीय श्रेणी में परीक्षा पास की। 1979 में कॉलेज में पहुँच गया। जहाँ पर स्थानीय विधायक (अब दिवगंत) के करीबी गुण्डे की दादागीरी, रैंगिंग और मनमानियों का खुलकर विरोध करके मैंने खूब वाहवाही लूटी। जिसके चलते कॉलेज का माहौल पढाई के लायक बन गया। मैं जब तक कॉलेज में था, रैंगिंग पूरी तरह से भुलादी गयी। मैं पढने में ठीकठाक था। अपनी कक्षा के प्रथम तीन छात्रों में शामिल हुआ करता था।
अचानक फिर से पढाई छूट गयी। अन्तिम वर्ष की तैयारी कर रहा था। मई, 1982 में परीक्षाएँ होने वाली थी। मैं एक मन्दिर के अहाते में कमरा किराये से लेकर रहता था। 14 अप्रेल, 1982 का दिन था, मैं किसी काम से कस्बे से बाहर गया हुआ था। इसी दिन कथित रूप से मन्दिर के पुजारी (अब दिवगंत) ने एक 13 वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार किया। बलात्कार के अगले दिन रहस्यमय परिस्थितियों में बच्ची की मृत्यु हो गयी।
पुलिस ने घटनास्थल से पुजारी को पकड लिया। स्थानीय लोगों का कहना था कि मृत्यु से पूर्व बच्ची ने पुजारी के खिलाफ बयान भी दिया था। स्थानीय समाचार पत्रों में भी इस बारे में समाचार प्रकाशित हुए थे, लेकिन विधायक को जैसे ही पता चला कि उसके करीबी गुण्डे का विरोध करने वाला अर्थात् मैं भी मन्दिर में किरायेदार था। विधायक ने राज्य के गृहमन्त्री (अब दिवंगत) से दबाव डलवाकर पुजारी को तो छुडवा दिया और मेरे नाम से मुकदमा दर्ज करवा दिया।
पुजारी स्थानीय विधायक की पार्टी का अच्छा कार्यकर्ता था। इसके अलावा मेरे पिताजी की जमीन छीनने वाले दुश्मनों का विधायकजी से करीब का नाता था।
1 मई, 1982 को पुलिस ने अपहरण, बलात्कार एवं हत्या के आरोप में मुझे गिरफ्तार कर लिया।
क्रमश: जारी.........
1- मैं यह अवश्य चाहता हूँ कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
2- थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।
3- यदि आप मुझे मेल करना चाहें तो मेरा मेल आईडी निम्न है। कृपया व्यक्तिगत सवाल नहीं करे।
umraquaidi@gmail.com
1- मैं यह अवश्य चाहता हूँ कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
2- थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।
3- यदि आप मुझे मेल करना चाहें तो मेरा मेल आईडी निम्न है। कृपया व्यक्तिगत सवाल नहीं करे।
umraquaidi@gmail.com
पाठकों की प्रतिक्रियाओं का इन्तजार...............
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ReplyDeleteकहीं न कहीं मन को ये विश्वास है की आप निर्दोष हैं । जानना चाहती हूँ की आगे क्या हुआ...
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बड़ी मार्मिक दास्ताँ है आपकी...आगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा. खुद पर भरोसा रखें....
ReplyDeleteजो आपके साथ हुआ उसका बहुत बहुत दुःख है। अपने आप पर भरोसा बनाये रखें और यह सब समय की मेहरबानी है। समय जैसा चाहता हे। तकदीर उसी करवट बदल जाती है। अब अपनी बची खुची जिन्दगी मौज मस्ती से गुजारों आगे कि कडियों का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteबहुत दुःख हुआ आप बीती सुनकर..अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा..
ReplyDeleteआप कि दास्तान पढ़ कर बेहद्द दुःख हुआ ,किन्तु फिर भी यह कहना चाहूंगी कि आपने जिस तरीके से अपने आप को इस ब्लॉग के द्वारा व्यक्त किया है वह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है और जैसा कि सभी ने लिखा है आगे कि कढी का इंतज़ार रहेगा जरुर लिखियेगा.....आप का जीवन निश्चय कि बहुत लोगों के लिये प्रेरणा का स्त्रोत बन सकता है और साथ ही इस कहावत को भी सच करता है कि ''हार का दूसरा नाम हे जीत होता है ''क्यूंकि यदि हार न हो तो जीत का मज़ा नहीं आता ...
ReplyDelete"आएँगी राह में हजार मुश्किलें
ReplyDeleteकरेंगे लहुलुहान कितने ही पत्थर
हर एक झोका तूफान का
गिराएगा बारम्बार धरती पर
लेकिन-
हारना नहीं है मुझे
संभालना है दुगनी शक्ति के साथ......"
जीवन संघर्ष है .....और जो लड़ता है वही जीतता है .....
बस इतना ही आप से कह सकती हूँ .......जीवन की जंग जारी रखिये !
आभार !
जनाब मुझे भी आपकी ये आप बीती सुनकर काफी दुःख हुआ लेकिन करें क्या ??,आजकल हर जगह ये गुंडागर्दी बहुत अधिक बढ़ चुकी है और अगर कोई इसका विरोध करता है तो उसे आपके जैसा अंजाम भुगतना पड़ता है ,
ReplyDeleteआपने बहुत बढ़िया तरीके से अपनी बात को रखा है ,मुझे भी आगे की कड़ी का इन्तेज़ार रहेगा ,
महक
"बीती ताहि बिसर दे , आगे की सुधि लेय" ये तो में नहीं जानता कि ये किसने कहा पर इतना जरुर जानता हूँ कि जिसने भी कहा है बहुत ही अच्छा कहा है ...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आये ... ओशो को पढ़े आपको आत्मिक शांति का अनुभव होगा ...... इश्वर आपके आगे के जीवन को खुशियों से भर दे
http://oshotheone.blogspot.com
कृपया word verification को हटा लें
ReplyDeleteAAPNE APNA BACHPAN OR JAWANI APNE KHANDHE PAR JI HAI
ReplyDeleteISHWAR PAR VISHWASH RAKEH
WWW.aatejate.BLOGSPOT.COM
भाई आपके कहे पर विश्वास हो तो रहा है । आप सच्चे हैं तो ईश्वर अवश्य आपकी मदद करेगा ।
ReplyDeleteसचमुच , आपके साथ हुए अन्याय के लिए बहुत सहानुभूति है ।
आगे जानने का इंतज़ार रहेगा ,
नई पोस्ट डालने पर मेल से सूचना भेजदें , कृपया ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
यह ब्लॉगिंग आप स्वयं करते हैं या किसी की मदद लेते हैं? आपकी शेष कहानी में मैं रुचि ले रहा हूँ. इसे लिखते रहें.
ReplyDeleteईमानदार लोगों का जीवन दुष्कर हो गया है,इसमें शक नहीं। बहुत देरी से न्याय मिल भी जाए,तो वह अंधेर से कुछ ही कम होता है। सुप्रीम कोर्ट जाते-जाते आदमी यों भी टूट चुका होता है।
ReplyDeleteअगली कड़ियों का इंतजार कर रहे हैं।
ReplyDeleteलिखियेगा जरूर।
आपकी आपबीती पढ कर बहुत दुख हुआ । पर मुझे विश्वास है कि आप ने जैसे खुद कानूनी किताबें पढ कर अपने आप को निर्दोष साबित किया है आप संघर्ष कर के आत्मविश्वास से जिंदगी की ये लडाई भी जीत जायेंगे । अगली कडी का इंतजार है । ब्लॉग बनाना और अपना कथ्य कहना आसान तो नही है पर इसे भी आपने कर ही लिया, हौसला रखें आगे सब अच्छा ही होगा ।
ReplyDeletewaqt ab badal gaya aur ateet peechhe choot gaya
ReplyDeleteab ujjaval bhavishya ki or dhyan deejiye
jeevan main sangharsh aadmi bahut oonchai pradan karta hai,
aab aage bade main eshwar ke kaamna karta hoon
...आगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा!!
ReplyDeleteaapka yun khulkar saamne aakar apni baat rakhna bohot hi sensitive approach hai...aur meri saari prarthnaayein aapke saath hain..khuda kare aapko sahi justice mile...har tarah se
ReplyDeletegod bless u
pallavi kee tippanee meree bhee .
ReplyDeleteइसीलिये तो हम रावण को बुलाने का जाप कर रहे हैं मित्र ....
ReplyDeleteआपके उज्जव भविष्य की शुभकामनाओं के साथ ...
आपके संघर्ष को सलाम |
ReplyDeleteमैं ये मानती हूँ कि हम सब अपने अपने प्रारब्ध को काटने यहाँ इस दुनिया में आये हैं , जो कुछ भी हमारे साथ घटित होता है वो निरुद्देश्य नहीं होता ...हर परिस्थिति हमें सिखा कर जाती है , हमें अपनी तरफ से जटिलताएं नहीं उत्पन्न करनी ..मन को हिलने भी न दो और जो गुजर रहा है वह हालात हैं , आत्मा तक मत उतरने दो .
ReplyDeleteहाँ ये महसूस करना बहुत मुश्किल है , मगर नामुमकिन नहीं है , जिन्दगी बहुत अनमोल है , जो सामने आएगा , उसी में अपना लक्ष्य खोज कर , कर्म करते हुए आगे बढ़ते रहिये , सच की ताकत बहुत बड़ी होती है , सच को किसी से नजर नहीं चुरानी पड़ती , हाँ न सहानुभूति जुटाने की इच्छा रखना , यही तो मन को जीतना है .
ब्लॉग तो इस तरह लिखा है कि पहली बार कंप्यूटर को हाथ लगाया हो , ऐसा नहीं लगता ...
अपनी विपदा को अपनी सीख समझ लो , हमारी शुभकामनाएं हैं आपके साथ
ईश्वर जिनकी मुश्किलें दूर करता है, इसका मतलब है कि वो उन्हे प्रेम करता है, लेकिन जिनकी मुश्किलें दूर नहीं करता है, इसका मतलब है कि वो उनपर विश्वास करता है। ईश्वर विश्वास करता है कि वो खुद अपनी मुश्किल दूर कर सकता है।
ReplyDeleteआप पर भी ईश्वर को विश्वास है। उसे पता है कि आप अपनी मुश्किलें खुद दूर कर सकते हैं। अभी तक आपने ईश्वर की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए अपनी मुश्किलें खुद हल की हैं। आगे भी ईश्वर का और अपना विश्वास बनाए रखिए।
याद रखिए कि आग में तपाया सोने को ही जाता है।
जो हुआ बुरा हुआ , पर आप अपनी जिंदगी का यह लक्ष्य बना ले कि आपकी तरह निर्दोष लोगो का सहारा बनेगे और ऐसा काम कर के जायेंगे कि लोग बरसो तक आपकी नेकी को याद रखेंगे ...आगे अपनी जिन्दगी दुखियों का , बेसहारों का भला करते हुए गुजरने कि कोशिश करे , हो सके तो गरीब अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा का कोई प्रबंध करे कोई संस्था बनाये ...आप काम शुरू करे जल्दी ही यह आगे बढ़ता जायेगा ...
ReplyDeleteआगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा.
आप के बारे में पूरा तो जान न पाऊँ शायद, लेकिन यह प्रसंग जो आपके जीवन की प्रमुख घटनाएँ - बल्कि पूरा जीवन ही है - ऐसा समझ कर, और आपके हर शब्द पर भरोसा कर के अपनी समझ, अनुभव और बुद्धि के अनुसार दूसरों के लिये सलाह और आप के बारे में क्या सुझाव दे सकता हूँ - यह निर्णय हो सकेगा।
ReplyDeleteआप की हिम्मत की दाद देता हूँ।
I m keenly lukin forward to read it further.. cant say dat i sympathise wid u kyuki m vishwas karne me samay leti hu fir bhi... wish u luck...
ReplyDeleteसत्य की विजय होगी. संघर्ष जारी रखें.
ReplyDeleteकई बार दुर्भाग्य हमें दूसरों के किए की सजा देता है। मगर अपने दुर्भाग्य से खुद ही जूझ कर निकलना होता है, जो आप बहुत अच्छे ढंग से कर रहे हैं। इसके लिए आपकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। यह पोस्ट प्रेरणादायी है।
ReplyDeleteआदमी के बनाये कानून, आदमी की रची गयी सजिसों से उबर भी कैसे सकते हैं . आप ने लिखा अच्छा होता की आप १४ साल की सजा कट लेते, पर क्यों क्योंकि लोग आज भी आप से नफ़रत करते हैं एक ऐसे कृत्य की सजा आप को लगातार दी जा रही है जिसे आपने किया ही नहीं और आप खुद के सही फैसले को भी गलत मानने लगे हैं अब, हारिये मत आप हारे तो जाने सच्चाई कहाँ कहाँ कितनी बार हारेगी , आप के जीवन का मकसद होना चाहिए जीना -जीना इसलिए क्योंकि जो गलत हैं जिन्होंने आप को , समाज को , एक मासूम लड़की को लूटा है , आप की जिन्दगी उनकी हार है , अगर आप और कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम उनके सामने जिन्दा रहिये हँसते और मुस्कुराते . ये उनके लिए सजा तो नहीं है पर सजा जैसा ही है वरना तो ऐसे लोगों सड़क पर खड़ा करके उनके साथ क्या करना चाहिए सब को पता है फिर भी ये मान के चलिए की कुछ फैसले ले पाना हमारे बस में नहीं होता क्योंकि उन फैसलों के लिए ऊपर वाले ने किसी और को चुना है और यकीन मानिये वक़्त आएगा उनके कर्मों की सजा उन्हें मिलेगी , आप बस खुद पर और अपने भगवान पर भरोसा रखें , याद रखिये आप वो नहीं हैं जो लोग आप को जानते हैं आप वो हैं जो आप खुद को जानते हैं .
ReplyDeleteमित्र आपकी कहानी पढ़ी , आप आगे भी लिखेंगे तब और समझ आएगी बात । प्रथम दृश्ट्या आपकी बात सही लगती है । वकीलों के विषय में आम धारणा वही है जो आपने बताया है , मेरा अपना भी यही अनुभव है । आपकी पूरी बात पढ़ने के बाद कुछ कहा जाए तो ही बेहतर होगा । इंतजार है आगे लिखिए । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteनमस्कार!
ReplyDeleteआपके तीन बिन्दुओं के उत्तर मेरी मति के अनुसार निम्न है:
१. 'समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता', 'होई सोई जो राम रची राखा', 'हुआ सो न्याय', आदि, आदि. यकीन मानिए मुझे कोई दया, रहम या सहानुभूति की फीलिंग नहीं है आपके लिए. एक उम्मीद है बस.... के आप जो हुआ उसके बावजूद पोज़िटिव रहेंगे. आपके लिए मेरा सन्देश: ज़िंदगी को सीर्यसली नहीं सिंसिअर्ली लीजिये...... खुश रहिये!
२. अधिक पाठक प्राप्त करने का सरलतम उपाय: अधिकाधिक पढ़िए, अधिकाधिक पाठक पाईये.
३. जो हमें लिखना था, लिख चुके हैं... मेल करने की आवश्यकता नहीं! जो आप अपनी मर्जी से बता देंगे, हमें उसी में सन्तुष्टी है.... हम खुद कुछ नहीं पूछेंगे!
शुभेच्छु,
आशीष
--
प्रायश्चित
जो आपके साथ हुआ उसका बहुत बहुत दुःख है।
ReplyDelete...हिम्म्ात के आगे हारे है हर बला ज़माने की...
ReplyDeleteDekhiye ji, dukh to hai. Per jo hota hai achchhe ke liye hota hai. Ye hamesha yaad rakhiye. Kisi ne kaha hai, 'jish din hum na hanse wo din vyarth gaya.' so sab bhagwan ki marji mankar khush rahiye.
ReplyDeleteDekhiye ji, dukh to hai. Per jo hota hai achchhe ke liye hota hai. Ye hamesha yaad rakhiye. Kisi ne kaha hai, 'jish din hum na hanse wo din vyarth gaya.' so sab bhagwan ki marji mankar khush rahiye.
ReplyDeleteapne marg par nidar aage badiye shubhkamnae sath hai......
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसत्य की सदा जीत होती है.
ReplyDeleteBAdhu hi marmik durghatna hui aapke sath, jaisa ki aapne kaha ki aap high court me mukadma jeet kar nirdosh savit hue, to fir isme koi afsos ki bat nhi, haan aapke jindgi ke wo sunhere din jo aapse chhin gaye wo bapis nhiaa sakte, isko niyati man kar aage badhiye/ himamt se aap kam le hi rahe hain/ har din ek sa nhi hota/ purani peedha ko bhula dijiye ya koshish to kar hi sakte hain, un bure palo/din ko yad karne se aapka bhavishye tay nhi hota/ be positive/ ant bhala to sab bhala...
ReplyDeleteaapke andar sabse badi baat kya hai ,yah shayad aap khud nahi jante.mere anusar vo hai aapka aatm-bal.kahate hai na ki apne karm ke prati nishhtha, apni mehanat aur ishwar me vishvas, ye teen yadi hamare pass hain to nirashyen jyaada dair aapke pass nahi rahengi.aapne imaandaari purvak apne aapko ek khuli kitaab ki tarah rakh diya hai jisme kahi koi baat aapke prati galat sabitnahi hoti ,
ReplyDeleteaap achhe dil ke ek nek insaan hain.housala rakhiye apne vishvas ka daman kabhi na chhoden.
himmat na hariye koshish to kijiye,
saflta aapke kadam choomegi.
inhi shubh-kamnaao ke saath-------
poonam
आपके जीवन की घटनाओं की झलक किसी फिल्म की कहानी सी लग रही हैं. लेकिन ये जीवन है...सचमुच चंद वर्षों के अनमोल जीवन में इंसान को हर क्षण परीक्षाओं से गुजरना पडता है, जो जितनी परीक्षाएं सरलता से पार करता जाता है वही सफल होता जाता है, जरा सी गलती, छोटी सी भूल, थोडी सी चूक जिदगी की इस परीक्षा से फेल करवा देती है्. आपकी लगन, हिम्मत और सीखने की क्षमता आज दुनिया भ्ार में आवाज पहुंचाने के माध्यम तक पहुंच चुकी है् हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं आपको न्याय जरूर मिलेगा्
ReplyDeleteयह कलियुग है |आप यई मन से सच्चे है और आपने कभी कोई गलत काम नहीं किया है तब आपको अपने पर पूरी निष्ठा रख कर
ReplyDeleteकोर्ट में जाना चाहिए |कोई देखे या ना देखे मेरा मानना है कि
कोई मदद करे या न करे ईश्वर हर तरह से किसी न किसी रूप में मदद करता है |आप पर यह इल्जाम टिक नहीं पाएगा और आप दोष मुक्त हो जाएंगे |जीवन मैं कई बार संघर्ष करना पडता है ,पर जीत सच्चाई की ही होती है | अच्छा विवरण |
आशा
bhai ji,aapki kahani ne hriday dravit kar diya...aap ke saath jo anyay hua usaki bharpayi koi nahin kar sakta parantu hriday me vishvas ki jyot sadaiv jalaye rakhiyega...ishwar ke ghar der hai andher nahin...
ReplyDeleteagli kadi ka intzar rahega...
हमारी संवेदना आपके साथ है.. अच्छा लिख रहे हैं आप.. यहाँ लिखने की बजाय आप मनोज पोच्केट बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, तुलसी पॉकेट बुक्स आदि के पास जाएँ तो यह कहानी सुपर हिट होगी.. किसी सीरिअल प्रोडूसर के पास भी जा सकते हैं.. लेकिन वह भी सावधान रहिएगा कि आपको कहानी का ड्यू क्रेडिट मिले... शुभकामना सहित... जिस तरह अपने अपना नाम, परिचय अदि गुप्त रखा है.. थोड़े दिनों में आपके प्रति सहानिभूति जाती रहेगी.. सो थोडा अपने बारे में भी बताएं..
ReplyDeletemain stabdh hoon padhkar.....
ReplyDeleteबहुत बुरा अनुभव रहा आपका...पर हिम्मत नहीं खोना अंकल जी,
ReplyDeleteकभी 'पाखी की दुनिया' की भी सैर पर आयें .
१. अपना आत्मा विश्वास मत खोइए
ReplyDelete२. जिंदगी के दिन एक जैसे नहीं रहते हैं, आज अमाबस है तो कभी न कभी पूनम आयेगी ...
३. लड़ते रहिये ... वैसे भी नहीं लड़ेंगे तो कोई जीत तो नहीं मिलेगी ...
४. अपना एक विडियो निकालिए ... उस विडियो को youtube पर डाल दीजिए
आपके साथ जो कुछ भी हुआ है बेहद कष्टदायक है ! मगर आप को पढ़कर यह अंदाज़ लगाना मुश्किल नहीं है कि आपको सही गलत कि परख सामान्य से कहीं अधिक है निस्संदेह आप अपने घर के पुनर्निर्माण के सम्पूर्ण योग्यता रखते हैं ! कृपया भूत को भुलाएँ और नवनिर्माण में लगें ताकि लोग आपके पदचिन्ह खोजें ! मैं जिस योग्य भी हूँ आपके लिए तत्पर हूँ !
ReplyDeleteमेरी हार्दिक शुभकामनायें
Agali kadee bhee padhee,lekin wahan comment box dikha nahi...
ReplyDeleteBada rhriday vidarak warnan hai aapke jeevan ka...man manta hai ki,aap nirdosh hain. Parijanon ka wyavhaar samaj ke dabaaw ke karan hoga...afsos!
Ab aapko aage dekhana hai...peechhe nahee...mere ek blog pe (" Bikhare Sitare"),do jeevaniyan likhi hain...zaroor padhen...shayad aapko kuchh tasallee mile.
आदरणीया kshamaJi,
ReplyDeleteआपने मेरे ब्लॉग "उम्र कैदी" पर पर टिप्पणी देकर अपने ब्लॉग बिखरे सितारे पर लिखी कहानी/जीवनी पढने के लिये आमन्त्रित किया। इसके लिये आपका दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
वाकई आपने अपनी लेखनी से घटना का सजीव चित्रण किया है। लगता है कि घटना अपनी आँखों के सामने घट रही है। मैंने एक साथ सारी किश्तें पढ डाली हैं। रहीमा का जीवन अपने प्यार के साथ गुजारे एक वर्ष की याद में गुजर जायेगा। ऐसा आपका मानना है, लेकिन जिसके सम्पूर्ण जीवन में एक पल भी ऐसा नहीं गुजरा हो, जिसे मीठी यादें कहा जा सके, उसका जीवन किस सहारे बीते? खैर...!
मैं जिस सेण्ट्रल जेल में रहा, वहाँ पर तकरीबन 300 कैदी प्रतिदिन नये आते थे और इतने ही प्रतिदिन छूटते थे। मेरा वास्ता उनमें से हजारों से रहा और आपने जो लिखी है, उससे कई गुना अधिक करुणा/दारुण दायिनी सच्ची घटनाएँ मुझे पल-पल याद रहती हैं। जिनके सहारे मैं यही सोच कर कि मेरे जीवन से उनका जीवन कितना भिन्न है। स्वयं को समझाकर "उम्र कैद" को काट रहा हूँ।
आपसे आग्रह है कि मेरे जीवन से सम्बन्धित जानकारी को जब तक ठीक लगे पढती रहें। मैं दुनिया छोडने से पूर्व अपने आपके बारे में और दुनियादारी, सरकार, समाज, प्रशासन, पुलिस, न्यायपालिका आदि के बारे में बहुत सारी बातें उजागर करना चाहता हूँ। देखता हूँ कि यह सम्भव हो पाता है या नहीं? उम्मीद पर दुनिया कायम है।
आपका शुभचिन्तक
उम्र कैदी
मन नही मानता कि ऐसा भी होता है मगर ये भी जानती हूँ कि होता है। अस्पताल मे नौकरी करते बहुत कुछ देखा है। जो भी हुया बहुत बुरा हुया लेकिन आब आगे के लिये सोचें। सच कहा कि उमीद पर दुनियाँ कायम है। बस इस उमीद को बनाये रखें। अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा। मेरे ब्लाग पर आने के लिये धन्यवाद। शुभकामनायें।
ReplyDeleteJanab,maaf karen...jise mai agalee kadee samajh baithi,wo aapki prastavana thee.
ReplyDeleteAapka lekhan bahut sashakt hai,kyonki aap apne darde jigar se likh rahe hain...insaan jab beinteha dard se guzarta hai,to usme ek aisee taaqat aa jaatee hai,jiske balboote pe wo any insaanon ke dil tak sahaj pahunch jata hai.
Ab "Bikhare Sitare" ke bareme...aap 51 kishton waali poojaa kee atmkatha zaroor padhen. Wo jeevani ek dard kaa safar hai,jo abhi khatm nahi hua...antheen-sa hai. Uske aakharee do kishon me se maine bahut kuchh delete kar diya hai. Wajah baad me bata doongee. Wo kishten aapko alag se mail kar doongee....(gar maalika padhna chahe to.)Padhenge,to mujhe bahut khushi hogi.Katha nayika ne anginat mushkile sahi hain...kuchh to warnaateet hain.Badi pur khatar rahonse uska jeevan guzra hai.
Sabse badhiya baat ye lag rahi hai,ki,pathakon ne aapko behad achha pratisaad diya hai.50 se oopar comment milna mamoolee baat nahee. Aapke man kaa bojh saajhaa ho raha hai...dekhiye chand kishon ke baad aapki udasi zaroor ghategee....!Dheron shubhkaamnayen!
हिम्मत मत हारिये .जहाँ इतना चल आए वहाँ आगे की राह अब इतनी मुश्किल नहीं लगेगी ,हाँ बनानी अपने आप ही पड़ेगी.आप निर्दोष हैं तो विश्वास रखिये स्थितियाँ आपके अनुकूल होती जायंगी .हमें आपसे पूरी सहानुभूति है !
ReplyDeleteव्यथित हृदय से आगे जानने की अभिलाषा है कि क्या हुआ...
ReplyDeletedo good and the horizon will be yours, aapne bahut sangharsh kite hain, inhe zaya na hone den. aage bhi sangharsh jari rakhiye , aapka bhala ho! hamari shubhkamnayen..............
ReplyDeletehmmm...
ReplyDeleteaage kaa intezaar hai...
कानून के क्षेत्र से जुडे होने के कारण मेरी जिज्ञासा सबसे अधिक है आपकी पूरी कहानी और मुकदमे के बारे में जानने की । मैं खुद पांच वर्षों तक एक बलात्कार के मुकदमों के लिए स्थापित विशेष कोर्ट में रह चुका हू और पहले भी कई बार कह चुका हूं कि देख कर अफ़सोस हुआ था कि उन मुकदमों से आधे से भी अधिक मुकदमे बलात्कार से इतर और ही कुछ थे । मै आपके ब्लॉग का अनुसरण करना शुरू कर रहा हूं ताकि आता रहूं ।
ReplyDeleteआप के अगले लेख का इन्तजार रहेगा .इस भ्रस्त शाशन में आप जैसे निर्भीक और सत्य को बताने वाले ही पिसते है .
ReplyDeleteओह .....बेहद दर्द भरी दास्तान है .....
ReplyDeleteजेल , अपमान , जिल्लत .......
पर जेहन में एक ही बात कौंधती है अगर आप सच्चाई पर हैं तो अपनी पहचान छुपाने की क्या जरुरत आन पड़ी .....?
और अगर आप सच्चाई पर होते तो परिवार जनों का कभी विरोध नहीं होता ....
निश्चित तौर पे वे आपकी कोई सच्चाई जानते हैं .....
पर ये अच्छी बात है आप किसी गलत राह पर नहीं गए ....
कोई इंसान ऐसा नहीं जिससे गलतियां नहीं होती ....हमें अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए ...
अपने आचरण को इस तरह का बनाइए वही परिजन एक दिन आपके गुणों के आगे नतमस्तक हो जायें .....
याद रखिये सच्चाई पर चलने वालोंके साथ ईश्वर होता है और झूठ गर्त की ओर ले जाता है .....
रब्ब पर विश्वास रखिये...ये भी इम्तहान है ....
इसमें अपना हौंसला, धीरज और विश्वास बनाये रखें ...
हर अँधेरी रात के बाद सुबह जरुर आती है ....
अंत में ....
आपमें बढिया लिखने की क्षमता है ....
अपनी लेखनी को और निखारें .....
शुभकामनाओं सहित ........!!
aage jaanane ki teevra utsukta hai....
ReplyDeletenyaay ki devi ki aakhen shayad isiliye band rahti hain.
आपका ब्लॉग पहले भी देखा था ......
ReplyDeleteनाम पढ़कर सोचा भी था ये क्या नाम हुआ भला ''उम्र कैदी '''
दुआ है आपके लिए अगर आप सच्चाई पर हैं तो आपको इन्साफ जरुर मिले .....
Aisa aksar hota hai ki jindgi main hum karna kuch chahte hain per hota kuch or hai, kher aapki dastan padhkar Dil main udasi to hui ,per main iss baat ko manta hun nki jo hua woh hua ,jindgi bahut khubsurut hai . isliye bhut main jine ki apeksha vartmaan ke bare main socho , bhavishye to khud hi sambar jayega ,agar aap atit main khoye rahe to jo pal aapke paas hain unko bhi sahi dhang se nahi ji payenge .....!
ReplyDeleteBhavishy ke liye shubhkaamnayen ,agle lrkh ka intjaar hai........!
"मैंने अपराधी नहीं बनने का रास्ता चुना" इसके लिए बधाई...
ReplyDeleteआपने अच्छा किया जो सत्य की राह पर चलकर अपनी आपबीती ब्लॉग के माध्यम के से जनजन तक पहुचाने का संकल्प लिया. भाई सत्य की राह बड़ी दुर्गम और तवील होती है इसलिए आपके हौसले को सलाम... आप ने हिम्मत कर जिस नए सफ़र का आगाज़ किया है उस पर बेखौफ चलें और और इंशा अल्लाह आप देखेंगे की सत्य की राह में आप तन्हाँ नहीं हैं...
बस एक दुविधा रह जाती है (कृपया अन्यथा नहीं लेंगे) कि जब आपने अपने जीवन की व्यक्तिगत घटनाओं को ही आधार बना कर ब्लॉग लेखन शुरू किया है तो, "कृपया व्यक्तिगत सवाल नहीं करे" का आग्रह क्यूँ?
आपने हिम्मात करके सत्य को सरल शब्दों में कहने का प्रयास किया, और इस प्रयास के लिए आपको दाद देता हूँ. कईयों के साथ इस तरह की घटना घटती है पर, कम लोग ही अपनी बात कहते हैं |
ReplyDeleteआश्चर्य!जब आप निर्दोष है तो परिवार वाले ऐसा क्यों कर रहे हैं? उन्हें तो हर पल आपको मानसिक सम्बल देना चाहिए.सच याझूथ क्या था ये आपकी अंतरात्मा बहुत अच्छी तरह जानती है.ये भी सच है झूठा ही सही ये दाग बहुत भयानक है विशेष कर एक मासूम बच्ची के साथ....जब आप उस दिन घटना स्थल पर थे ही नही तो आपने उसे साबित करने की कोशिश क्यों नही की?
ReplyDeleteआप जहाँ भी थे उस दिन क्या उसका कोई पुख्ता सबूत या गवाह नही था? खैर जो भी हुआ.....मन भूल हो भी जाये तो उसका मतलब ये नही कि व्यक्ति हमेशा के लिए बुरा ही बन गया है.अपने व्यवहार,कर्म से इंसान अपनी जगह फिर बना लेता है.मैंने कई अपराधियों को बाद में एक बहुत अच्छे और सम्मानित स्थान समाज में पाते हुए देखा है.
जीवन में कई बार अनचाहे हादसे हमारे साथ हो जाते हैं किन्तु...जीवन कहीं भी ठहरता नही है.
मन दुखी मत रखो ना ही जो हुआ उसके लिए खुद को दोष दो.ईश्वर सब अच्छा करेगा.उस पर यकीन करो.आपको पश्चाताप है यानि अभी बहुत कुछ आपमें कायम है .एक भला इंसान आप में जिन्दा है.उसे संभालिए.जेल से छूटने के बाद मैंने लोगो को और भी बड़ा अपराधी बनते देखा है. आपने अपने आपको इस दलदल में गिरने से बचाए रखा ये कम है क्या?अपने आपके साथ रहोगे तो अपनी क्वालितिज़ को पहचानोगे और वो आपको समाज में वापस सम्मान भी दिलाएगा.
मैं कोई मदद कर सकूं....निसंकोच बताना.समाजसेवी नही हूँ पर...
ऐसे सब..सबके साथ हूँ,बाते नही करती...करती हूँ.
jitna aap apne aap ko imandari se jan skte hai utna our koi nhi, isiye jo poochhna hai apni antratma se puchhiye . agr aap shi hai to apne aatmvishwas ko our bhi jyada pukhta krte jaiye , kisi ki prwah mt kriye ki koun kya khta hai . ydi aap apni nigah me khi bhi glt hai to usko bhi puri imandari se kubul krte huye utni hi imandari se pshchtap kr lijiye .mn ka sara dvnd bh jayega our apne aap ko dono hi pristhitiyo me hlka mhsoos krenge .
ReplyDeleteapni antratma se bdi adalt duniya me khi nhi hai .aapki abhivykti ki kshmta bhut achchhi hai aap iska sdupyoog blog pr kr ke nihsndeh pathko ko bhi labhanvit kra skte hai .
bhut bhut shubhkamnaye .
der se aane ke liye kshmaa..
ReplyDeleteaapki marmsparshi aapbeeti maine usi din padh lee thee bahut dukh huva.. par reply nahi kar paayi...
aapne kuch galat nahi kiya to prabhu pe vishwaas rakho... apne jiwan me punah urjaa ko dharan karo.. aapne kuch galat nahi kiya ye to aapki antaraatma to janti hai to aap apka ab koi kuch nahi bigaad payegaa ..aap acche karmon me Kalyaankari karmo me man lagaye...hamari shubhkaamnayen...
आप तो एक उदहारण मात्र है हमारी जेलों में ऐसे ही न जाने कितने निर्दोष भरे पड़ें है ,अब इसे किसका दोष माना जाये .१-पुलिस जो सही पड़ताल नही करती,२-वकील जो अक्सर गलत तथ्य पेश करता है या ३- न्यायपालिका जो केवल कागज़ी सबूतों को ही मानती है ..इस चक्र में एक भलेमानुष की तो पूरी उम्र ही तमाम हो जाती है..आपसे निवेदन है की हिम्मत से परिस्थितियां अनूकुल होने की प्रतीक्षा करें आखिर में जीत सत्य की ही होगी....
ReplyDeleteपरमात्मा आप की मदद केरे
ReplyDeleteआप को शुख शान्ति प्रदान करे
जो हो गया उसको तो बदल नही सकते
आगे आपका जीवन सुखमय हो यही प्राथना है
आप के जीवन का बुरा समय गुजर चुका है
ReplyDeleteआप के परिवार को आप का साथ देना चाहिए था
जो आपके साथ घटा निश्चित ही वह दुखद है। मुझे इस संदर्भ में आपकी कहानी की अगली पोस्टों का कतई इंतजार नहीं है। इंतजार है आपकी नई सोच का जो अपने पिछले अनुभवों में पक कर बनाई है। हां यह अवश्य है कि उन अनुभवों की बात आप बीच बीच में करते रहें। अन्यथा आपकी यह आपबीती एक सत्यकथा बनकर रह जाएगी और लोग उसे उसी तरह पढ़ेगे़।
ReplyDeleteआपने अपने बचपन का गणित का जो उदाहरण दिया वह आप पर नहीं हमारी शिक्षा प्रणाली में गणित पढ़ाने पर सवाल उठाता है। आज भी प्राथमिक कक्षा के बच्चे 4595 को वैसे ही लिखते हैं क्योंकि स्थानीय मान या प्लेस वैल्यू की अवधारणा समझाना अब तक हम नहीं सीख पाए हैं।
और आप सच्चे हैं तो दुनिया के सामने उसी तरह आइए। यह पर्दादारी आपको बहुत दिनों तक जारी नहीं रखनी चाहिए।
आपकी दास्तां तो दर्दनाक और शर्मनाक है. आपके के घरवालों को तो कम से कम अब आपका साथ देना ही
ReplyDeleteचाहिए था .मैं चाहूँगा कि अब आप शांति से अपना जीवन व्यतीत करें. जिन लोगों ने आपको फंसाया उन लोगों को
कभी भी माफ़ नहीं किया जा सकता. उन्होंने आपकी ज़िन्दगी तबाह कर दी. आप के साथ बहुत ही नाइंसाफी हुई है.
काश आपको इन्साफ मिले, और अपराधियों को सजा मिले तो कुछ बात बने .
आप किसके उम्र कैदी हैं ?
ReplyDeleteउम्र कैदी जी ! परिस्थितियों का सामना तो करना ही होगा ! पर भावुकता में न रह कर जीवन के लक्ष्य को आधार बनाना चाहिए ! इससे आप की लड़ाई केवल आपकी नही बल्कि उन तमाम लोंगों की होगी जो अच्छे हैं और लड़ रहे हैं ! याद रखिये ...यदि जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है , तो अच्छाई के मार्ग पर दृढ़ता के साथ चलने के आलावा कोई विकल्प नही है ! आपके लिए सुखमय जीवन के लिए शुभ कामनाएं !!
ReplyDeleteआप मेरी पोस्ट पर आए आभार | आपके जीवन की करुण-गाथा पढ़कर दुःख हुआ ;लेकिन उससे भी ज्यादा दुःख तब हुआ जब आपके द्वारा दर्शाई गयी परिस्थितियों का आंकलन किया ---
ReplyDeleteयदि मैं कहीं जा रहा हूँ और कोई द्वेष रखने वाला ,मुझे उठाकर गंदे-बदबू-दार नाले में फेंक दे ;तो स्वाभाविक है कि यथा-संभव जल्दी से नाले से बाहर आऊँगा और नहा कर कपडे बदलूँगा |
मैं आपका नाम नहीं जानता | नाम -'जन्म के बाद माँ-बाप द्वारा दी गयी दूसरी सबसे खूबशूरत नेमत' जो आपकी पहिचान थी ;का कहीं अता-पता नहीं है | आदरणीय-पूज्य माता-पिता द्वारा
दी गयी पहिचान को दर-किनार करके ,एक विरोधी-दुश्मन द्वारा वलात आपके गले में डाल दी गयी पहिचान को ही आपने अपने अस्तित्व पर चस्पा कर लिया | नाले कि गन्दगी में सने कपडे
आप आज भी ढो रहे हैं | क्या ये खास हैं? यदि नहीं तो इनसे इतना लगाव क्यों ? अपने दिलेरी दिखाई है |यदि आपके कथन अक्षरस:सत्य हैं तो आप जांबाज हैं .एक दिलेर ,जिसने फनां होने
के कगार पर भी इंसानियत को जिन्दा रखा है ,आपका नाम भी जांबाज,दिलेर या ........होता | आपकी समस्या का समाधान यहाँ-वहां नहीं आपके ही हौसलों में मिलेगा | आपने कहावत सुनी होगी ,'भगवान भी उसकी मदद करते हैं जो अपनी खुद मदद करते हैं |' फिर इन्सान की औकात क्या ? खुदा कहलो ,भगवान कहलो या कहें कुदरत ने इस मानव-जिस्म में
अनंत-ऊर्जा समाहित की है | ऊर्जा को उद्देलित करने या उकसाने के लिए इच्छा-शक्ति दी है | 'ऊर्जा ,अच्छाई की ओर जा रही है या बुराई की ओर?ये जानने के लिए विवेक बनाया है |
जब सारे समाधान अन्दर ही हैं तो बाहर यहाँ-वहां भटकने से क्या मिलेगा ? मैं आपके बीच का ही आदमी हूँ ,कोई युग-द्रष्टा नहीं |यहाँ लगभग सभी की जिंदगी इतनी ही पेचीदी है |
आपने लिखा है कि आपको दया रहम या झूठी सहानुभूति नहीं चाहिए | ये कैसे संभव है अपनी पोस्ट की टिप्पणियां देखिए ,लगभग सभी ने हाथ फिराया है ; इन कपड़ों में यही मिलेगा |
मैं दो तल्ख़ बातों के साथ समापन करता हूँ ---
सबसे पहले कपडे बदलिए (कपडे बदलने का आशय तो समझ रहे होंगे)|
किसी रोजी-रोजगार से लगिए( ये सोचकर कि काम छोटा या बड़ा नहीं होता ,क्यों कि इसकी-उसकी पोस्ट पर चौधरी बन कर टिपण्णी करने वाला मैं खुद मजदूरी करता हूँ) |
ताकि आपके दिमांग में जो बेवजह चलता रहता है वो कमA हो और दिमांग में से शैतान बाहर आए |इस तरह बदलाव अवश्य आएगा |
धन्यवाद |
आदरणीय श्री दादूदर्शन जी,
ReplyDeleteनमस्कार।
आपने दादूदर्शन के नाम से मेरे ब्लॉग-उम्र कैदी-पर पधारकर अगाध आत्मीयता से सराबोर निम्न सकारात्मक, ऊर्जावान और ओजस्वी टिप्पणी लिखी, जिसके मेरी ओर से हृदय ये आभार स्वीकार करें।
आप मेरी पोस्ट पर आए आभार। आपके जीवन की करुण-गाथा प‹ढकर दु:ख हुआ, लेकिन उससे भी ज्यादा दु:ख तब हुआ जब आपके द्वारा दर्शाई गयी परिस्थितियों का आंकलन किया ---
यदि मैं कहीं जा रहा हूँ और कोई द्वेष रखने वाला, मुझे उठाकर गंदे-बदबू-दार नाले में फेंक दे, तो स्वाभाविक है कि यथा-संभव जल्दी से नाले से बाहर आऊँगा और नहा कर कपडे बदलूँगा।
मैं आपका नाम नहीं जानता। नाम -जन्म के बाद माँ-बाप द्वारा दी गयी दूसरी सबसे खूबशूरत नेमत जो आपकी पहिचान थी, का कहीं अता-पता नहीं है। आदरणीय-पूज्य माता-पिता द्वारा दी गयी पहिचान को दर-किनार करके ,एक विरोधी-दुश्मन द्वारा वलात (बलात्) आपके गले में डाल दी गयी पहिचान को ही आपने अपने अस्तित्व पर चस्पा कर लिया। नाले कि गन्दगी में सने कप‹डे आप आज भी ढो रहे हैं। क्या ये खास हैं? यदि नहीं तो इनसे इतना लगाव क्यों ? अपने दिलेरी दिखाई है। यदि आपके कथन अक्षरस:सत्य हैं तो आप जांबाज हैं। एक दिलेर ,जिसने फनां होने के कगार पर भी इंसानियत को जिन्दा रखा है, आपका नाम भी जांबाज, दिलेर या ........होता। आपकी समस्या का समाधान यहाँ-वहाँ नहीं आपके ही हौसलों में मिलेगा। आपने कहावत सुनी होगी ,भगवान भी उसकी मदद करते हैं जो अपनी खुद मदद करते हैं। फिर इन्सान की औकात क्या ? खुदा कहलो, भगवान कहलो या कहें कुदरत ने इस मानव-जिस्म में अनंत-ऊर्जा समाहित की है। ऊर्जा को उद्देलित (उद्वेलित) करने या उकसाने के लिए इच्छा-शक्ति दी है। ऊर्जा, अच्छाई की ओर जा रही है या बुराई की ओर? ये जानने के लिए विवेक बनाया है।
जब सारे समाधान अन्दर ही हैं तो बाहर यहाँ-वहाँ भटकने से क्या मिलेगा? मैं आपके बीच का ही आदमी हूँ,कोई युग-द्रष्टा नहीं। यहाँ लगभग सभी की qजदगी इतनी ही पेचीदी है।
आपने लिखा है कि आपको दया रहम या झूठी सहानुभूति नहीं चाहिए। ये कैसे संभव है, अपनी पोस्ट की टिप्पणियां देखिए, लगभग सभी ने हाथ फिराया है, इन कप‹डों में यही मिलेगा।
मैं दो तल्ख बातों के साथ समापन करता हूँ ---
सबसे पहले कपडे बदलिए (कपडे बदलने का आशय तो समझ रहे होंगे)।
किसी रोजी-रोजगार से लगिए (ये सोचकर कि काम छोटा या ब‹डा नहीं होता, क्योंकि इसकी-उसकी पोस्ट पर चौधरी बनकर टिपण्णी करने वाला मैं खुद मजदूरी करता हूँ)।
ताकि आपके दिमांग में जो बेवजह चलता रहता है वो कम हो और दिमांग में से शैतान बाहर आए। इस तरह बदलाव अवश्य आएगा।
धन्यवाद।
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मुझे आपकी तल्ख बातों का कोई बुरा नहीं लगा, बल्कि मुझे तो खुशी है कि आप जैसे भी हैं, इस दुनिया मैं। यदि मैं इस ब्लॉग पर उम्र कैदी के रूप में प्रस्तुत नहीं होता तो आपकी उक्त टिप्पणी भी मुझे नहीं मिलती। जहाँ तक आपकी अन्तिम दो सलाहों का सवाल है, तो श्रीमान जी आपने बहुत जल्दी मेरा आकलन कर लिया है कि मैं बेरोजगार या निकम्मा हूँ और न हीं किसी भी काम को छोटा ब‹डा समझता हूँ। मैं फिलहाल इतना ही लिख सकता हूँ कि प्रतिदिन औसत १४-१५ घण्टे काम करता हूँ।
जहाँ तक बलात् लिपटाये गये गन्दगी भरे कप‹डों में अभी तक लिपटे रहने की बात है, आपने अपने दृष्टिकोण से बहुत सही लिखा है, लेकिन हर बार, हर रास्ता मंजिल तक नहीं पहुँचाया करता है। बन्दूक से निकली हर एक गोली निशाने पर नहीं लगती है। उसी प्रकार आपकी इतनी सही बात भी सच्चाई से बहुत दूर है। यही तो जानने और समझने की बात है कि गन्दगी ढेर में, गन्दगी से सने व्यक्ति को नहाने का अवसर देने से पूर्व ही या नहा लेने के बाद भी बार-बार गन्दगी में धक्के मारने वाले यदि ऐसे रक्त सम्बन्धी हों, जिन्हें व्यक्ति चाहकर भी दुश्मन नहीं कह सकता! दुश्मन मान भी ले तो दुश्मनी निभा नहीं सकता, तो फिर क्या गन्दा नजर आना उसकी नीयति नहीं बन जाती है? यदि ऐसा करने वाले जन्म देने वाले माता-पिता और भाई ही हों तो, मुश्किल और भी बढ जाती है। विशेषकर तब स्थिति और भी विचित्र हो जाती है, जबकि निशाना दागने वाले को अपने निशाने से आहत होने वाले के दर्द का अहसास ही नहीं हो। रही बात नाम की तो आदरणीय आपको सारी जानकारी मिलेगी और आगे आप जैसे गुणीजनों को ही निर्णय करना है कि क्यों मैं आज भी स्वयं को उम्र कैदी लिख रहा हूँ?
आशा है कि आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा। शुभकामनाओं सहित।
मित्र आपको सभी ने जीवन को जीने की सलाह दी है इसलिए जहां तक आपकी कहानी के पहले अंक का प्रश्न है उसे पढ़कर मैं भी यहीं राय दूंगा। क्योंकि जीवन में कठिनाईयों से घबराकर जिन्दगी से समझौता करना कोई बहादुरी नहीं है। लेकिन इन सब बातों के अलावा मेरे मन में आपके ब्लाग को देखकर एक बात उठी कि जहां तक आपकी प्रस्तावना का सवाल है उसे पढ़कर प्रतीत होता है की आप पर सन 1984 में मुकदमा दायर हुआ क्योंकि बकौल आपके यदि अपील नहीं करते तो 1998 तक 14 वर्ष की सजा भुगत चुके होते अर्थात आप सन 1988 से जेल में नहीं है। इसका अभिप्राय ये हुआ कि पिछले 22 वर्षा से आप कुछ ना कुछ अवश्य कर रहे है तो अचानक आपको आगें क्या करना चाहिए इसके लिए पूछने की आवश्यकता कैसे आन पड़ी थोड़ा समझने में मुश्किल हुई। डर है आपकी कहानी भी कहीं हिन्दी समाचार चैनलों की तरह टी0आर0पी0 बढ़ाने वाला शगुफा मात्र ना हों। हो सके तो प्रोफाईल सम्पूर्ण करें।
ReplyDeleteho gayaa ...?
ReplyDeleteho gayaa teraa.....???
ReplyDeletehnm...???
श्री शेखावत जी,
ReplyDeleteआपने प्रारम्भ में मित्र का सम्बोधन दिया है और अन्तिम वाक्य में इस अनाम मित्र पर बहुत ब‹डा सन्देह प्रकट करके, मित्रता को पहले ही चरण में धरासाई कर दिया! खैर...! आपने मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी की, इसके लिये आपका धन्यवाद।
श्री शेखावत जी आपने लिखा है कि-
मेरे मन में आपके ब्लाग को देखकर एक बात उठी कि जहां तक आपकी प्रस्तावना का सवाल है उसे प‹ढकर प्रतीत होता है की आप पर सन १९८४ में मुकदमा दायर हुआ क्योंकि बकौल आपके यदि अपील नहीं करते तो १९९८ तक १४ वर्ष की सजा भुगत चुके होते अर्थात आप सन १९८८ से जेल में नहीं है।
आपके ब्लॉग के अनुसार आप एक अधिवक्ता हैं। कानून जानते हैं। दण्ड प्रक्रिया संहित की धारा ४३३ (ए) के अनुसार उम्र कैद का मतलब कम से कम १४ वर्ष है। जितना मैं, जानता हूँ, इसके बारे में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में कहा गया है कि उम्र कैद में विचारण के दौरान जेल में गुजारा गया समय उम्र कैद में नहीं जो‹डा जाता है। इसलिये आपका सन्देह जायज है, लेकिन सही नहीं है। मुझे १९८४ में उम्र कैद की सजा सुनाई गयी थी और मैं १९८६ में बाइज्जत बरी हो चुका हूँ और निश्चय ही तब से समाज का हिस्सा भी हूँ।
आपके अगले वाक्य में आपने लिखा है कि-
इसका अभिप्राय ये हुआ कि पिछले २२ वर्षा से आप कुछ ना कुछ अवश्य कर रहे है तो अचानक आपको आगें क्या करना चाहिए इसके लिए पूछने की आवश्यकता कैसे आन प‹डी थो‹डा समझने में मुश्किल हुई?
हाँ मैं १९८६ से कुछ न कुछ कर ही रहा हूँ। लेकिन मैंने दस वर्ष पहले सवाल पूछा होता तो भी आप कह सकते थे कि १४ वर्ष बाद सवाल क्यों पूछा गया। फिर भी सवाल तो आपका जायज ही है, लेकिन अभी इसका उत्तर मांगना समीचीन नहीं हैं। युक्तियुक्त समय पर आपको इसका जवाब मिल जायेगा।
आगे आप लिखते हैं कि-
डर है आपकी कहानी भी कहीं हिन्दी समाचार चौनलों की तरह टी०आर०पी० ब‹ढाने वाला शगुफा मात्र ना हों। हो सके तो प्रोफाईल सम्पूर्ण करें।
क्षमा करें। प्रोफाइल पूरा करना सम्भव नहीं है, लेकिन आपका उक्त सन्देह पूरी तरह से निराधार है। आप निश्चिन्त रहें, आपको सच्ची जानकारी ही प्राप्त हो रही है।
सबकी टिप्पणियां तो नहीं पढ़ सका अभी तो आपकी कहानी की भी एक ही किश्त पढ़ी है ... इसलिए कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी ! फिर भी दो बातें आपसे कहूँगा ... मानव सभ्यता के विकास की प्रकृति नें आपसे कुछ काम लेना है.. हो सकता है यह कोई बहुत बड़ा कार्य हो ! उसके संकेत को पहचानने का प्रयास कीजिये! यह शायद कलम के माध्यम से ही होने वाला हो ! सो गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ लिखिए ..शब्द के प्रति जिम्मेदारी कम लोग ही महसूस कर पाते हैं ..
ReplyDeleteदूसरी बात मानव समाज में जितने भी उपद्रव और अशांति, अन्याय और शोषण व्याप्त है उसके पीछे तीन शब्द हैं "मैं और मेरा परिवार"..
और जो कुछ भी लिखना होगा आपको पढ़ने के बाद ही लिख पाऊँगा !
Adbhut very nice all articles.
ReplyDeleteaapki aapbiti padker ahsaas hota he ki jhoot ki kaali chhaya such ko chhupa deti he.. lekin vishwaas rakhiye such ka surye jab udaye hoga to apne prakaash se us jhoot ki kaali chhaya ko mita dega.... aur vese bhi aapne likha ki aap saza bhi bhoogat chuke he(jis gunah ko apne kiyaa nahi)..mtlab aap saari aapbiti bhoolkr ek naye jivan ki shurubaat kre.. aur aisa banaye ki dusre bhi imaandari aur sachhai se prenit ho....
ReplyDeletebest of luck