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Thursday, October 14, 2010

पाठक और मैं-1

मेरे इस ब्लॉग पर आकर अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने, अपने महत्वपूर्ण विचार एवं अनुभव मेरे साथ बांटे हैं। जिसके लिये मैं सभी का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।

कई मित्रों ने मुझे अपनी ओर से सहयोग प्रदान करने का विश्वास भी दिलाया है। जिसके लिये मैं उन सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। इसी सन्दर्भ में एक साथी श्री अरुण सी राय जी ने लिखा है कि-
"यहाँ लिखने की बजाय आप मनोज पॉकेट बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, तुलसी पॉकेट बुक्स आदि के पास जाएँ तो यह कहानी सुपर हिट होगी.. किसी सीरिअल प्रोडूसर के पास भी जा सकते हैं.. लेकिन वह भी सावधान रहिएगा कि आपको कहानी का ड्यू क्रेडिट मिले।"
इस बारे में, मैंने श्री राय जी के ब्लॉग पर जाकर उनका ई-मेल आईडी पता किया और उन्हें मेल किया तथा इस बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करनी चाही, लेकिन अभी तक कोई प्रतिउत्तर नहीं मिला है। हो सकता है कि श्री राय साहब किसी वजह से इतने व्यस्त रहे हों कि मेरा मेल देख ही नहीं पाये हों। या वे इस मेल आईडी को कम उपयोग करते हों।

इस बारे में भी मेरा पाठकों से आग्रह है कि यदि आप किसी प्रकार का मार्गदर्शन या सहयोग करने का आश्वासन देते हैं तो (हालांकि मुझे व्यक्तिगत रूप से वर्तमान कम से कम आर्थिक सहयोग की कोई दरकार नहीं है।) अपना ई-मेल आईडी या अन्य कोई सम्पर्क सूत्र दे सकें तो ही आपकी ओर से दिये गये किसी भी प्रकार के आश्वासन का कोई अर्थ है। और यदि कोई बात पूछना चाहूँ तो अनुरोध है कि कृपया उसका प्रतिउत्तर अवश्य देने का कष्ट करें।

मैंने श्री राय साहब को निम्न मेल किया था-
"व्यावसायिक दृष्टि से उपरोक्त महत्वपूर्ण सुझाव देने के लिये आपका फिर से आभार प्रकट करता हूँ। वास्तव में मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मैं, मेरी दु:खद परिस्थतियों का आर्थिक लाभ भी उठा सकता हूँ। आपके सुझाव और आपके ब्लॉग पर आपके परिचय को जानने के बाद विचार करना लाजिमी है। यदि आप अन्यथा नहीं लें तो आपसे ही साग्रह अनुरोध है कि कृपया इस बारे में क्या आप कोई सहयोग कर सकते हैं? हो सकता है कि कुछ धन अर्जित हो जाये और मेरे या समाज के जरूरतमन्दों के काम आ सके।"
उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में अन्य कोई पाठक मित्र किसी प्रकार की जानकारी प्रदान कर सकें या इस बारे में कोई राय देना चाहें तो मैं आभारी रहूँगा।

अनेक मित्रों ने इस बात पर सवाल उठाया है कि व्यक्तिगत सवाल क्यों नहीं पूछे जाने चाहिये या व्यक्तिगत मामला होने पर भी या यदि सच्चाई बयान करनी है तो फिर सच्चाई या व्यक्तिगत पहचान को छुपाने की क्या तुक हैं?

मित्रो, हम मानव हैं और मानव समाज में व्याप्त सभी प्रकार के गुणावगुणों से हम सभी आप्लावित हैं। अन्धकार और कौहरा हम सभी के जीवन में कभी न कभी आ ही धमकता है। हम जिस मानव समाज में रहते हैं, उस समाज में हजारों गुणों के साथ-साथ कुछेक ऐसे अवगुण या नकारात्मक व्यवहार भी विद्यमान हैं, जो हमें आपस में एक दूसरे का दुश्मन बनाने का ही काम करते रहते हैं। मेरा मानना है कि हम में से बहुत से किसी व्यक्ति का धर्म, जाति, क्षेत्र, राज्य या सरनैम जानकर ही उस व्यक्ति के बारे में अपनी सोच बदल लेते हैं। ऐसे में मेरा केवल इतना सा अनुरोध है कि मैं नहीं चाहता कि मेरी पहचान प्रकट होने के बाद कुछ मित्र मेरे प्रति विशेष आग्रह, अनुराग, दुराग्रह या पूर्वाग्रह से प्रभावित होकर अपने विचार रखें।

मैं ऐसा मानता हूँ, बल्कि मेरा ऐसा अनुभव है कि जब तक हम किसी व्यक्ति की पृष्ठभूमि या कहो व्यक्तिगत पहचान को नहीं जानते हैं, उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण निष्पक्ष, तटस्थ एवं न्यायसंगत रह सकता हैं, लेकिन जैसे ही हमें पता चलता है कि सामने वाला हिन्दू, सिक्ख, इस्लाम या ईसाई धर्म का अनुयाई है या हमें जैसे ही पता चलता है कि सामने वाले की जाति क्या है? यहाँ तक कि उसके व्यवसाय, क्षेत्र या राज्य तक का पता चलते ही हममें से अनेक के स्वाभाविक विचार और मानवीय व्यवहार तत्काल बदल जाते हैं और हम पूरी तरह से औपचाहरिक या नाटकीय व्यवहार करने लगते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम ईमानदार नहीं रह पाते हैं। हालांकि इसके लिये हम नहीं, बल्कि हमारा वह समाज ही जिम्मेदार है, जिसमें रहकर हमारा समाजीकरण हुआ है। जहाँ हमें अच्छा-बुरा सोच संस्कारों में मिला है, जबकि इस ब्लॉग पर तो मैं अपने मन में यह विचार संजोये हुए हूँ कि आप सभी अनेक मुद्दों पर मुझे अपने अमूल्य और निष्पक्ष विचार, सलाह और मार्गदर्शन प्रदान करके उपकृत करेंगे। मुद्दे भी ऐसे होंगे कि जिन पर वास्तव में निष्पक्ष लोगों के विचारों की ही जरूरत होगी है।

इसलिये मेरी परिस्थितिजन्य विवशता है कि मैं अपनी पहचान को कम से कम अभी तो छिपा कर ही रखूँ। हाँ मैं आपको यह विश्वास अवश्य दिलाता हूँ कि इसी ब्लॉग पर आपको मेरी पूरी पहचान पढने को मिलेगी। मैं समय की मांग और परिस्थितियों की अनुमति के अनुसार बीच-बीच में भी अपनी सांकेतिक पहचान प्रकट करते रहने की सोच रहा हूँ। यह भी स्पष्ट कर दूँ कि मेरी ओर से व्यक्तिगत सवाल नहीं पूछने के अनुरोध का आशय यही है कि मेरी पहचान को प्रकट करने वाला सवाल नहीं पूछें तो ठीक होगा। अन्य कोई भी सवाल पूछने में कोई आपत्ति नहीं है।

मेरा स्पष्ट मानना है कि सवाल हमेशा उत्तर मांगते हैं और सवालों से वही भागते हैं, जिनके पास उत्तर नहीं होते हैं। इसलिये मित्रो आप मुझसे मेरे विवरण से जुडे विषयों के सम्बन्ध में खुलकर सवाल पूछें। केवल इतना सा अनुरोध है कि आप ऐसा कोई सवाल नहीं पूछें कि जिससे मेरी पहचान का पता या अनुमान होता हो।  उदाहरण के लिये एक मित्र ने पूछा है कि क्या मैं तिहाड जेल में था? आशा है कि मेरे इस अनुरोध को आप अन्यथा नहीं लेंगे।

मेरी पहचान का पहला संकेत :
मेरी पहचान का पहला संकेत यह है कि अनेक समसामयिक और अनन्य विषयों पर लिखे गये मेरे अनेकानेक आलेख अन्तरजाल पर अनेक हिन्दी न्यूज पोर्टल्स पर प्रदर्शित/प्रकाशित हो रहे हैं, जिनमें से अनेक नवभारत टाईम्स, देशबन्धु, डेली न्यूज आदि में भी प्रकाशित हो चुके हैं। न जाने क्यों, मुझे मेरे पाठक ठीक-ठाक लेखक समझकर पढते हैं। मैं अनेक ऐसे विषयों पर भी लिखता हूँ, जो पाठकों की स्थापित धारणाओं (मेरी नजर में भ्रान्तियों) को तोडते हैं, तो मुझे कटु आलोचना और असंसदीय भाषा में पाठकों के उबाल को भी झेलना पडता है। यही तो इस देश की असली तस्वीर है। यदि ऐसे पाठकों को मेरी असली पहचान पता चल जाये तो वे तो इस ब्लॉग पर आकर मुझ पर तनिक भी विश्वास नहीं करेंगे और मेरी वेदना या मेरे संघर्ष को सीधे नाटक करार दे देंगे। मैं समझता हूँ कि आप मेरे आग्रह और अनुरोध को समझ गये होंगे।
उपरोक्त के अलावा भी अनेक मित्रों ने अनेक प्रकार के सवाल उठाये हैं। यदि सभी के प्रतिउत्तर लिखने लगूँगा तो यह मेरी दास्ताँ कम और प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम अधिक लगेगा, फिर भी मैं दौहरा दूँ कि हर प्रश्न उत्तर मांगता है, सो उत्तर तो देने ही होंगे, लेकिन मित्रो यदि आप पढते जाओगे तो अधिकांश सवालों के उत्तर आगे की कड़ियों में अपने आप मिलते जायेंगे।